Monday, April 11, 2011

तेरी सोच से निकल जाऊंगा.........

तेरे शहर तेरी सोच से निकल जाऊंगा 
किसी उदास शाम में ढल जाऊंजा 

तू जो मुकर गया है हर बात से अपनी 
देख लेना एक दिन मैं नही बदल जाऊंगा 

मत दिखा मुझको अपना पशेमान चेहरा 
जा के तू जानता है मई पिघल जाऊंगा 

चाहे लाख तरपू  तेरे इन्तजार में 
मत लौट के आना मैं संभल जाऊँगा 

तेरा होना इतना ज़रूरी तो नहीं है
मैं तो यादों के खिलोनों से बेहाल जाऊँगा

मशरुर कर दो.........

मुझे अपने बदन की खुसबू से मशरुर कर दो 
मुझे अपनी नाज़ुक बाँहों में मशरुर कर दो 

सीने से लगा का सारे ग़म दूर कर दो 
मैं तुमसे जुदा न हो पाऊँ इतना मजबूर कर दो

लेके बाहों में तुझे होटों से इतना चूम लू 
फासले शर्म -ओ-हया के तुम भी दूर कर दो

मेरी नस नस में बस जाये जान प्यार तेरा 
मैं किसी और को न देखूं इतना मगरूर कर दो